इज़राइल ने पार की हदें! ईरान में तबाही सैंकड़ों लाशें – कब रुकेगा ये युद्ध ?

 2025 के जून में इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने सीधे युद्ध का रूप ले लिया है। जून की दूसरी हफ्ते में इज़राइली वायुसेना ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हमले शुरू किए, जिससे दोनों देशों के बीच गतिरोध गहरा गया। समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, यह संघर्ष 13 जून 2025 को भड़का, जब इज़राइली जेट विमानों ने ईरान के कई परमाणु संयंत्रों, मिसाइल कारखानों और सैन्य अड्डों को निशाना बनाया। इन हवाई हमलों में एक मानवाधिकार समूह के मुताबिक ईरान में कम से कम 639 लोगों की मौत हुई, जिनमें 263 आम नागरिक शामिल थे, और करीब 1300 लोग घायल हुए। इसके तुरंत बाद ईरान ने लगभग 450 मिसाइल और 1000 ड्रोन इज़राइल की ओर दागे, जिनमें से अधिकांश को इज़राइल की बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणालियों ने रोक दिया। इस प्रत्युत्तर में इज़राइल में भी कम से कम 24 लोग मारे गए और सैंकड़ों घायल हुए हैं।

दोनों पक्षों के बीच यह युद्व उभरकर आया है वैसे तनाव का वह क्रम जो पिछले वर्षों में कई मोर्चों पर चल रहा था। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव के बाद 2015 में एक अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ था लेकिन बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे छोड़ दिया। इसके बाद ईरान ने यूरेनियम समृद्धि स्तर 60% तक बढ़ा दिया था। इज़राइल को डर था कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बेहद करीब पहुंच रहा है। यही कारण है कि इज़राइल ने अपने अभियान को ईरान के “अस्तित्वगत खतरे” को समाप्त करने तक जारी रखने की बात कही है। संघर्ष की पृष्ठभूमि में इस बात का भी योगदान रहा कि पिछले साल अप्रैल 2024 में ईरान ने पहली बार सीधे इज़राइल पर 200 से अधिक ड्रोन और मिसाइल दागे थे, जिसे अमेरिका और विश्व ने बेहद खतरनाक कदम माना था।

इज़राइल ने पार की हदें! ईरान में तबाही, सैंकड़ों लाशें – कब रुकेगा ये युद्ध?"
फोटो : janatanews.in

दोनों पक्षों की प्रतिक्रियाएं और कार्रवाइयां

इज़राइल ने अपने आक्रामक रुख को बनाए रखा है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कह दिया है कि इज़राइल के हमले तब तक चलेंगे जब तक उसे ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खतरा समझना पड़े। इज़राइल के सैन्य अधिकारियों ने भी युद्ध के प्रति दृढ़ संकल्प जताया है। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उन्होंने ईरान के अधिकांश मिसाइल लॉन्चरों को नष्ट कर दिया है जिससे ईरानी हमलों की तादाद धीमी हुई है। इसके बावजूद, बड़ी संख्या में मिसाइलें और ड्रोन इज़राइल के शहरों की ओर आईं। उदाहरण के लिए, हाइफ़ा शहर में एक ईरानी मिसाइल के गिरने से कम से कम 31 लोग घायल हुए। इज़राइल ने जवाबी कार्रवाई में कई शीर्ष ईरानी सैन्य और परमाणु वैज्ञानिकों को लक्षित कर हवाई हमलों में मार गिराया जिनमें उच्च रैंक के जनरल भी शामिल हैं। इज़राइली रक्षा मंत्री ने बताया कि हमले में खालिद कमांडर समेत कई शीर्ष पदस्थ इरानी अधिकारी मारे गए जिनका संबंध हमास और हिज़बुल्लाह को हथियार पहुंचाने वाले कार्यक्रमों से था।

दूसरी ओर ईरान ने आक्रामक नीतियों का बचाव करते हुए इज़राइल की कार्रवाइयों की तीखी आलोचना की है। ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरघची ने कहा कि अगर इज़राइल हमले बंद नहीं करता है तो ईरान कूटनीति के अवसरों पर विचार करेगा। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भी चेतावनी दी कि अमेरिका का इसमें सीधा हस्तक्षेप ‘बहुत, बहुत खतरनाक’ होगा। ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह ख़ामेनेई ने इज़राइली हमलों और ट्रंप की धमकियों को “अक्षम” करार दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि “ईरानी राष्ट्र हार नहीं मानने वाला” है और यदि अमेरिका ने हस्तक्षेप किया तो उसे अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ेगा। इसी मनोबल के साथ ईरान ने जवाबी मिसाइल और ड्रोन हमले जारी रखे, जिससे इज़राइल के कई हिस्सों में हमलावरों को रोकने की कोशिशें तेज हुईं।

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आम नागरिकों पर प्रभाव

 इज़राइल के तेल अवीव शहर में रात के समय मिसाइल इंटरसेप्शन का यह दृश्य आम नागरिकों के भय को दर्शाता है। दोनों पक्षों की टक्कर का सबसे बड़ा खामियाज़ा यहाँ की बेबस जनता उठा रही है। इज़राइल में बम चेतावनी मिलने पर लोग भूमिगत आश्रयों और मेट्रो स्टेशनों में छिपते हैं। कई रिहायशी इलाकों में मिसाइलों से इमारतें क्षतिग्रस्त हुई हैं, और अस्पतालों में भी संकट का माहौल है। दूसरी ओर ईरान में भी स्थिति जटिल है। राजधानी तेहरान सहित कई महानगरों में कम से कम 263 नागरिकों की मौत हो चुकी है, और हजारों घायल हो गए हैं। इलाके बन्द हो गए हैं:

इंटरनेट सेवाएं लगभग ठप हैं, बाजार बंद हैं, पेट्रोल के लिए लंबी कतारें लगी हैं और लोग घर छोड़े भाग रहे हैं। इन सबके बीच आम आदमी की रोज़मर्रा की ज़िंदगी अस्थिर हुई है। अस्पताल की फरियादें, शरणार्थी-तम्बुओं में रहने वाली महिलाएँ-बच्चे और हर माँ-बाप का डर मानवीय संकट की तस्वीर बयां करता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ और मध्यस्थता प्रयास

संघर्ष बढ़ता देख विश्व समुदाय में बेचैनी है। शांति स्थापना के प्रयासों में यूरोपीय मंत्रियों ने इज़राइल और ईरान के उच्च अधिकारियों से जिनेवा में मुलाकात की, लेकिन चार घंटे की वार्ता के बाद कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला। संयुक्त राष्ट्र और उसके परमाणु ऊर्जा बोर्ड ने आगाह किया है कि युद्ध और परमाणु संयंत्रों पर हमले से व्यापक तबाही हो सकती है। विशेषकर आईएईए के प्रमुख ने बसहेर 

परमाणु संयंत्र पर हमले से रेडियोधर्मी आपातकाल की आशंका जताई है। दूसरी ओर अमेरिका ने इज़राइल के समर्थन का भरोसा दिया है, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने युद्ध में शामिल होने का फैसला दो सप्ताह के लिए टाल दिया है। इसके चलते अमेरिकी राजनयिकों और उनके परिवारों को इज़राइल से निकाला भी गया।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ख़ास तौर पर इस विषय पर ध्यान दिया है। उन्होंने इज़राइल के साथ फोन वार्ता में यह सुनिश्चित कराया कि बसहेर परमाणु संयंत्र पर रूसी कर्मचारियों को कोई ख़तरा नहीं होगा। मध्य पूर्व के अन्य देशों और संगठनों ने भी कार्रवाई की चेतावनी दी है। उदाहरण के लिए, ओआईसी (इस्लामिक सहयोग संगठन) की बैठक में ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि अगर युद्ध रुका तो ईरान कूटनीति पर विचार करेगा। संक्षेप में, वैश्विक नेता तनाव को नियंत्रित करने और वार्ता की वकालत कर रहे हैं, लेकिन वास्तविक कदम दोनों प्रमुख देशों की सहमति पर निर्भर हैं।

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संभावित समाधान और आगे की राह

वर्तमान स्थिति से निकलने के लिए कूटनीति और संयम पर जोर दिया जा रहा है। संभावित समाधान के सुझावों में शामिल हैं: परमाणु समझौते पर फिर चर्चा: ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के दायरे में बने रहने के आश्वासन के साथ 2015 जैसा नया समझौता या पुराना समझौता बहाल करना। पुतिन ने भी बताया है कि बातचीत से समाधान खोजा जा सकता है।

मध्यस्थता में अंतर्राष्ट्रीय पहल: संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस या अन्य प्रभावशाली देश यदि मध्यस्थता करें तो गतिरोध टूट सकता है। दोनों पक्षों ने संकेत दिए हैं कि हमले बंद होने पर बातचीत की गुंजाइश है।तत्काल युद्धविराम और मानवीय राहत: मानवता की दृष्टि से तुरंत संघर्ष विराम की मांग हो रही है, जिससे सैन्य कार्रवाई के बजाय आम लोगों को खाना, पानी और इलाज मुहैया कराया जा सके।

इन सुझावों में से किसी भी कार्यान्वयन के लिए दोनों देशों की राजनैतिक इच्छाशक्ति आवश्यक होगी। फिलहाल वैश्विक दबाव और कूटनीतिक प्रयास जारी हैं, लेकिन संघर्ष की अग्नि बुझने में समय लग सकता है।

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